बस कुछ ही पल लगते है,
जैसे कुछ ही पलो में हवाई जहाज़ बादलों के बीच में पहोच जाता है,
वैसे ही कुछ ही पलो में जीवन में कुछ भी बदल सकता है,
हम ख़ुद को पंख दे कर उड़ा भी सकते है,
और ख़ुद को वज़न से पाताल की गहराइयों में खींच भी सकते है,
बस कुछ ही पल लगते है,
एक मूँह से निकली हुई बात ही लगती है
बहुत कुछ पलट देने में,
पर फिर कुछ ही षणो की दृढ़ता भी लगती है
दिल से एक माफ़ी निकलवा देने में!
अभी हम उड़ रहे है बादलों के ऊपर,
कुछ दूध से सफ़ेद,
कुछ हल्के नीले,
कुछ सलेटी–सलेटी से है ये मनचले,
हमारे मन की तरह,
जाने ना जाने ऐसे कितने ही भांवो के थपेड़े झेलता है हमारा मन दिन भर?
जैसे मिष्ठी ने पूछा था ना आज,
मौसी, किंडल रख लिया?
चार्जर रख लिया?
टेलेफ़ोन का चार्जर रख लिया?
एक छोटी सी बच्ची ने जब मेरे समान की परवाह की,
मन को सुकून मिला,
जैसे तेज़ हवा ने पानी की सतह पर उड़ना बंद कर दिया हो,
और अब धूप की किरणें चमक रही हो शांत पानी के चंदन मुख पर,
उन्ही किरणो से चमक रहा है मेरे मन का चंदन दर्पण।
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