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ये कैसा जीवनसाथी मिला है

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ये कैसा जीवनसाथी मिला है,

जिसके बारे में सोच कर,

मन को इतना सुकून मिलता है,

हमने तो उलटा ही देखा था अक्सर,

लोग अपने पति और प्रेमी से बचबच कर भागते है

और वो तो कीचड़ से लथपथ सड़क पर हमारे पैरों की धूल पत्ते तोड़ कर उनसे रगड़रगड़ कर साफ़ करता है,

हमारे नाख़ून घिसना चाहता है,

अब इस संगी को मात्रपित्र से मिलाने में कैसा संकोच,

यही की वो बस उम्र में हमसे थोड़ा छोटा है,

पर ख़ूबियाँ उसमें ऐसी है

मानो सों जीवन जी कर उसने सीखा हो जीना,

जैसे हर दिन कईकई बार उसने जीए हो,

और उसे पता चल गया की क्या करना है हर एक वक़्त

उसके आलिंगन के बारे में सोच कर ही मन रजनीगंधा के फूलो की तरह महकने लगता है,

नहीं वो रजनीगंधा नहीं जो कल की पिक्चर में उस हीरोईन की मेज़ पर सजे थे एक काँच के मर्तबान में

एक पल वो किसी के सपने देखती थी,

तो दूसरे ही पल किसी और के,

असली रजनीगंधा की बात कर रही हूँ मैं,

जो जब क्यारियाँ भर दे तो लगे की वही अप्सराओं का निवास होता होगा,

वरना तो इतनी सुंदर, भीनी-भीनी ख़ुशबू से कौन किसको रिझाने की कोशिश करेगा|

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