जैसे शांख होती है ना बिना पत्तो के,
जैसे सर्दियों में माटी होती है, बारिश के इंतजार में,
जैसे पत्तझड़ में धरती होती है सूखे पत्तो से पटी,
पर सूरज से वंचित,
जैसे पूर्णिमा के चाँद पर बादल छा जाता है कभी-कभी,
जैसे मछली होती है पानी के बाहर,
ऐसा ही है मेरा अस्तित्व तुम्हारे बिना,